hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गुणगान की अंत्याक्षरी में

कृष्ण बिहारीलाल पांडेय


वे अभी
निर्माण चिन्तन में लगे हैं
और हम गुणगान की अन्त्याक्षरी में

सच किसी
दरबार सा बाहर खड़ा है
और भीतर झूठ मसनद से टिका है,
मूल्य रक्षा की ध्वजा के ठीक नीचे
आदमी हर चीज से
सस्ता बिका है
मालिकों की
अर्चना में हुआ प्रस्तुत
श्रम लिए परिवार अपना तश्तरी में

संधियाँ
इस दौर में ऐसी हुर्इ हैं
महाभारत हर दिशा में मच रहे हैं
मूल लेखन से बड़े हैं शुद्धिपत्रक
और हम खुश हैं नया कुछ
रच रहे हैं
व्याकरण की
हर नसीहत है उपेक्षित
व्यस्त हैं सब शब्द की बाजीगरी में

सूर्य के
संसार के हैं नागरिक हम
तिमिर से अनुबंध लेकिन हर कहीं है
अब कहाँ संवाद की संभावनाएँ
प्रश्न तक की जब हमें
अनुमति नहीं है
रोशनी का
शाम तक क्या हाल होगा
धुँधलका छाने लगा जब दुपहरी में।

सूखती
धरती प्रतीक्षा कर रही थी
बादलों से जल भरी चिट्ठी मिलेगी
जानता था कौन इस जनतंत्र में भी
फसल पक्के तलघरों
में ही उगेगी
प्यास की
पीड़ा उन्हें कैसे पता हो
तृप्ति जिनकी छलकती है बिसलरी में

 


End Text   End Text    End Text